रावण और अयोध्या
लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
|लंकापति रावण की सभा चल रही थी। सभी रावण के शौर्य और यश का गुणगान कर रहे थे। परम प्रतापी राजा रावण जिसे दशानन भी कहा जाता था अपनी उपलब्धियों का आनंद ले रहे थे। शनिदेव उनके पैरों के नीचे दबे थे। रावण उनकी कमर पर अपने पैर रखकर बैठता था। ये तब से था जब मेघनाथ का जन्म हो रहा था। महान ज्योतिषशास्त्री रावण ने गणना करनी शुरू की तो पता चला कि शनिदेव बार बार अपना स्थान बदल रहे थे इससे रावण की गणना में दिक्कत हो रही थी अतः क्रुद्ध होकर उसने शनि देव पर आक्रमण करके उसे बन्धक बना लिया और अपने सिंहासन के पास जंजीरों से बांध दिया। इसके बाद ही वह सदा शनि की कमर पर अपने पैर रखकर बैठने लगा। इससे उसकी ख्याति भी बढ़ती थी और शनि की किसी टेढ़ी चाल से भी वह बचा रहता था। तभी उसके दरबार में एक ब्राह्मण आया और उसने रावण की प्रशंसा की। रावण ने गर्वित होकर उससे पूछा कि संसार मे उसके सिवा कोई और है जो इस प्रशंसा का पात्र हो, उसके समान वीर और पराक्रमी हो। इस पर ब्राह्मण सकुचा गया और कहने लगा कि निसंदेह रावण संसार का बड़ा ही पराक्रमी योद्धा है। रावण समझ गया कि इस विप्र के मन मे अवश्य कोई संदेह है इसलिए इसने मुझे सर्वश्रेष्ठ नहीं माना। रावण ने उसे अभयदान देते हुए कहा - विप्र मैं तुम्हे अभयदान देता हूँ, अपने मन की बात निसंकोच मेरे समक्ष रखो। तब ब्राह्मण ने कहा - इसमें कोई शक नहीं कि आप महा प्रतापी और पराक्रमी शिवभक्त हैं पर आप से भी बड़ा कोई योद्धा और शिवभक्त है जो अपने आप मे अद्वितीय है। वही त्रिलोक में देवाधिदेव का सबसे बड़ा साधक भी है। उस राजा का नाम अज है और वह सरयू तट स्थित अयोध्या नगरी का राजा है। ब्राह्मण का यथोचित सत्कार कर विदा करने के उपरांत रावण किसी को बिना बताए ही अयोध्या के लिए निकल गया। वह अपने बाहुबल से अज को जीतना चाहता था ताकि संसार को अपना प्रताप दिखा सके। जब रावण आज के पास पहुंचा तो उसने देखा कि राजा अज दोपहर की शिव वंदना में लीन थे। उन्होंने महादेव की वंदना की और जल को आगे अर्पित करने की जगह पीछे अर्पित किया। रावण को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसका पंडित मन अज की इस गलती पर आक्रोशित ही गया। वह भूल गया कि वह अज से युद्ध करने की इच्छा से आया था। आज महाराज अज के पास जाकर बोला कि वंदना के उपरांत जल का अभिषेक आगे की ओर किया जाता है न की पीछे, अतः इसका कोई कारण हो तो बताएं अन्यथा शिव वंदना में सुधार कर लें। महाराज अज ने अपनी दिव्य दृष्टि से रावण को पहचान लिया एवम उसकी इच्छा को भी जान लिया। महारकज जानते थे कि यह युद्ध का निमंत्रण अकारण ही निर्दोषों की मृत्यु का कारक होगा। अतः इसे टालना ही श्रेयस्कर होगा।उन्होंने रावण को बताया कि आज जब वे ध्यान मुद्रा में शिव की अर्चना कर रहे थे तभी उन्हें यहां से एक योजन दूर जंगल मे एक गऊ घास चरती हुई दिखी। उसकी ओर आखेट की मुद्रा में एक सिंह बढ़ रहा था। चूंकि ब्राह्मण और गऊ उनके राज्य में अबध्य हैं अतः गऊ की प्राण रक्षा हेतु जल का अभिषेक पीछे कीओर कर दिया। अज की यह बात सुनकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह युद्ध की बात भूलकर महाराज के कथन की सत्यता जानने हेतु जंगल की ओर निकल गया। वहां पहुंच कर उसने देखा कि सचमुच में वहां एक गाय घास चर रही थी और उसके पीछे ही एक भयानक सिंह मृत पड़ा था जिसके शरीर मे कई बाण लगे थे। अब रावण को उस विप्र की बात का संज्ञान हुआ जिसने महाराज अज की भूरी भूरि प्रशंसा की थी।अब रावण को विश्वास हो गया कि जिस महापुरुष के जल से ही बाण बन जाते हैं बिना किसी लक्ष्य साधन के लक्ष्य वेधन हो जाता है ऐसे वीर पुरुष को जीतना लगभग असंभव सा प्रतीत होता है। यह सब महादेव की कृपा के बिना संभव नहीं है। अतः वह बिना युद्ध किये ही वापस लौट गया।
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