चित्रकूट, अत्रि ऋषि और भरतकूप।
त्रेता युग में अयोध्या के राजा महाराज दशरथ जी के आज्ञा का अनुपालन करने हेतु उनके पुत्र राम अपनी पत्नी सीता तथा छोटे भाई लक्षमण के साथ अपने वनवास की चौदह वर्ष की अवधि बिताने के क्रम में सबसे पहले चित्रकूट आए। कुछ कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने अपनी वनवास की अवधि के ग्यारह वर्ष यहाँ बिताये थे । चित्रकूट भारत के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है और इसे अनेक आश्चयों की पहाड़ी कहा जाता है।
वर्तमान में चित्रकूट उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में स्थित है। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले का मुख्यालय चित्रकूट धाम में है। मध्यप्रदेश के सतना जिले में चित्रकूट एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। चित्रकूट विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरा हुआ है। इसे ब्रह्म पुरी के नाम से भी जाना जाता है।।
त्रेता युग में भगवान् श्री राम के वनवास के दिनों चित्रकूट एक घनघोर जंगल था और यहाँ तरह तरह के राक्षस मौजूद थे। वहाँ जंगलों में अनेकों ऋषि मुनि अपना अपना आश्रम बना कर रहते थे और तपस्या करते थे। राक्षस उनका तपस्या भंग कर देते थे और उन्हें मार देते थे। जब भगवान राम वनवास काल में चित्रकूट आए तो उन्होंने अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुँच कर उनसे वहाँ की जानकारी ली और अपने ठहरने का स्थान पुछा। इस पर अत्रि ऋषि ने बताया कि यहाँ राक्षसों का वास है और आपको इन सब से मुकाबला करना पड़ेगा, तभी आप चित्रकूट में निवास कर सकते हैं। भगवान् राम ने अत्रि ऋषि को आश्वासन दिया कि वो यहाँ रह कर राक्षसों का वध करेंगे और उन्होंने वैसा ही वहाँ रह कर किया भी ।
अत्रि ऋषि चित्रकूट के तपोवन में रहते थे। वे ब्रह्मा जी के दश मानस पुत्रों में से एक थे।वे सप्तर्षियों में से भी एक थे। वे सती अनुसुइया के पति थे। सती अनुसुइया सोलह सतियों में से एक थीं।ऐसा माना जाता है कि अत्रि ऋषि ने कृषि के विकास में योगदान दिया था।
राजा दशरथ ने अपने दिये गये वचन के अनुसार एक तरफ जहाँ श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास दिया था, वहीं भरत को अयोध्या का राज दिया था। लेकिन यह भरत को स्वीकार नहीं हुआ और वे राम का सेवक बन कर रहना चाहते थे, न की अयोध्या का राजा। उन्होंने सब का आज्ञा लेकर श्री राम के पास वन में जाना उचित समझा। उन्होंने कहा कि मेरे कारण ही श्री राम को वनवास में जाना पड़ा है। मेरे समान आज पापी कौन है। अत: वो श्री राम के पास वन में जाने की तैयारी कर लिए। उनके साथ छोटे भाई शत्रुघ्न , माताएँ और गुरू वशिष्ठ समेत बहुत सारे अयोध्या के लोग भी वन को चल दिए। श्रीरामचरितमानस में ऐसा कहा गया है कि भरत जी ने चलले समय भगवान् राम को अयोध्या के राजा के रूप में सम्मानित करने के लिए सभी पवित्र तीर्थों का जल एकत्र कर अपने साथ ले लिया था, अगर वो भगवान् राम को अयोध्या लौटने और अयोध्या के राजा के रूप में अपनी जगह लेने के लिए मनाने में असफल रहे।
चित्रकूट पहुँच कर भरत जी जब श्री राम से मिले तो भगवान् राम ने उन्हें समझाया कि इस समय हम दोनों भाईयों का धर्म है, पिता के वचन का पालन करना। इस प्रकार जब श्री राम लौटने को तैयार नहीं हुए तब भरत जी उनका चरण पादुका लेकर उसे ही अयोध्या के सिंहासन पर रख कर सेवक के रूप में अयोध्या का राज पाट श्री राम के वनवास की अवधि भर चलाने को तैयार हुए। अपने अयोध्या लौटने के पहले भरत जी ने प्रभु श्री राम से चित्रकूट देखने की लालसा जाहिर की, जहाँ जहाँ श्री राम के चरण पड़े थे। इस पर भगवान् राम ने उन्हें अत्रि ऋषि के साथ उनके आज्ञा अनुसार भ्रमण कर देखने के लिए अनुमति दिये।
अपने चित्रकूट दर्शन के दरमियान भरत जी ने अत्रि ऋषि से अपने साथ लाए गए पवित्र जल को कहीं रखने के लिए आज्ञा मांगी। तब महर्षि अत्रि के निर्देशानुसार वह पवित्र जल एक कुएं में डाल दिया गया। यह कुंआ भरतकूप के नाम से विख्यात हो गया। वर्तमान में यह भरतकूप चित्रकूट में भरतकूप गाँव के निकट चित्रकूट के पश्चिम में लगभग बीस किलोमीटर दूरी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस कुएं के जल से स्नान करने का अर्थ सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है। इसके साथ ही इस कूप के जल से स्नान करने पर शरीर के असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं।
श्रीरामचरितमानस में इस कुएं का वर्णन करते हुए संत तुलसीदास जी ने लिखा है कि :-
भरतकूप अब कहिहहिं लोगा।
अति पावन तीरथ जल जोगा।।
प्रेम सनेम निमज्जत प्रानी।
होइहहिं विमल करम मन बानी।।
आज कल मकर संक्रांति के अवसर पर भरतकूप में पांच दिन का मेला लगता है। यहाँ पर बुंदेलखंड के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं और इस कूप में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
जय प्रकाश कुवंर
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