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मैं ही हूँ....

मैं ही हूँ....

मानव जीवन का मैं
एक सत्य बताता हूँ।
अपने बारे में तुमको
मैं कुछ बतलाता हूँ।
हमसे भाग के देखो
कैसे मैं-मैं करता रहता हूँ।
भीड़-भाड़ में होकर भी
मैं अलग ही दिखता हूँ।।

मैं मैं का गुण-गान करके
मैं मैं करता रहता हूँ।
और अपने आगे किसी को
कुछ नही समझता हूँ।
इसलिए मानवता को मैं
कुछ समझ न पाया हूँ।
और कहनी करनी का
अब फल भुगत रहा हूँ।।

दुनिया की इस भीड़ में देखो।
हम अलग ही दिखते है।
मैं के चक्कर में रहकर।
बहुत अंहिन्कारी जो है।।

जीवन की तुम देखो नईया।
अब कौन पार लगवायेगा।
मानव जीवन के सत्य को।
अब कौन बतलायेगा।।

हाल बुरा है अब मेरा।
इस मानव दुनिया में।
था जब तक उच्चपद पर।
तो समझा नही मानव को।
मैं मैं ने मेरा जीवन को
अब मैं एकाकी जो बना दिया।।

जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई
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