जीवन का सच
सुरेन्द्र कुमार रंजनजीवन की है अजीब कहानी,
बोझों से भरी है यह जिंदगानी।
जिम्मेवारियों का बोझ उठाकर,
बन गया गदहा - सा बोझ वाहक।
जब तक जीवन का बोझ उठाता रहा,
तब तक भरपूर आहार मैं पाता रहा।
ज्यों - ज्यों जीवन ढलता गया,
त्यों - त्यों कर्मों का बोझ बढ़ता गया।
बोझ उठाते उठाते मैं थक - सा गया,
ऐसा लगा कि जीवन अब ठहर - सा गया।
जब बोझ उठाने से मैं लाचार हुआ,
तब परिवार वालों के लिए बेकार हुआ।
जिसने जीवन भर अपनों का बोझ उठाया,
उसी ने निष्ठुर होकर मुझे बहुत सताया।
बुजुर्ग गदहा समझ तब अपनों ने,
बेइज्जत कर मुझे घर से निकाला
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