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एगो

एगो

डॉ रामकृष्ण मिश्र

आबीजा, गाबीजा,मिलजुल के सब हमनी
समरस मन के एगो गीत।

एक्के गो धरती हे एक्के अकास, चान
सूरुज के एक्के इंजोर
धरती जे अन दे हे हरखायल मन दे हे
कहिओ न करे हमर- तोर।
फिन काहे जात- पात बड़का छोटका नामे
आपस में हवा करूँ तीत।।

गउँआँ में सब के सब भाई ,चच्चा, बाबा
नाता-रिस्ता केतना मीठ।
कोई लोहा, कोई काठ के करीगर कोइ
जूता बनाबे में ढीठ।
खेते के अनपुरना सब लागी जिनगी भर
बाँटे ओडिआ भर - भर प्रीत।।

पूजा, छट्टी ,बिआह चाहे हो दसहारा-
होली - दीवाली सब एक।
जीनी- मरनी सब्भे दुख- सुख में एक साथ,
खुस हो जिनगी ,एक्के टेक।।
एही मन्तर समरस के हे जिऔले त
हम जाही सच्चो के जीत।। 
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डा रामकृष्ण
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