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लोकतंत्र पर जब हमला, आपातकाल लगा था,

लोकतंत्र पर जब हमला, आपातकाल लगा था,

सम्पूर्ण विपक्ष भारत में, व्यथित हुआ खड़ा था।
चहूँ ओर गहमा-गहमी, बस तानाशाही मनमानी,
बिना गुनाह जेलों के भीतर, कानून मृत पड़ा था।


जिसने चाहा सच को सच बोलूं, दुश्मन वही बना,
नजरबंदी- सजा मौत, उत्पीड़ित गुनहगार बना।
उत्पीड़न करने वाला ही, अन्याय को न्याय बताता,
राम कृष्ण की पावन भूमि पर, कंस सा राज बना।


थे हालात विकट, निराशा चहुँ ओर भारी थी,
अन्धकार सघन मगर, किरण की तैयारी थी।
हुआ एकजुट विपक्ष, एकता परचम फहराया,
आपातकाल हटा सबने नई सरकार विचारी थी।

अ कीर्ति वर्द्धन
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