जीवन और मृत्यु का संवाद
ज़िंदगी ने पूछा एक दिन यह सवाल मौत से,क्यों छीन लेती जिंदगी बिता किसी मलाल।
मौत मुस्कुराई, बोली- "ये है मेरा काम,
ज़िंदगी तेरा हर पृष्ठ मुझको ही समर्पित है।"
क्यों जिए जाते हो, लिए सांसों की लालसा,
जब अंत में सबको यही राह है तय करनी।
जिंदगी कहती है- "हर पल में है खुशी,
हर पल प्यार, हर पल में है जीने की वजह।"
जीवन बोला, हे मृत्यु, बता दे क्यों?
छीन लेती मुझसे, ये पल क्यों?
क्यों बांधती तू, मुझे इस बंधन में?
क्यों भर देती, मेरी आंखों में नयन में?
मृत्यु मुस्काई, बोली, हे जीवन, सुन
तुझे देती हूं, एक नया जन्म
इस संसार में, तू आया था क्यों?
खोजने आया था, सत्य का ज्ञान क्यों?
मौत कहती है- "ये सब है क्षणिक,
सब कुछ खत्म हो जाएगा, ये है निश्चित।"
ज़िंदगी कहती है- "क्षणिक है तो क्या हुआ,
हर क्षण को जीना है, खुशियां मनाना है।"
मलालों के बोझ से, तू क्यों डरता है?
हर पल को जी, मुस्कराता रहता है।
ये जीवन तुझे, सीखने को देता है,
हर पल में, कुछ नया बताता है।
मैं आती हूं, तेरे करीब, तू डरता क्यों है?
एक नया अध्याय, तेरे लिए खुलता है।
इस संसार में, तेरा सफर जारी रहेगा,
तू हमेशा, यादों में जिंदा रहेगा।
ये सवाल और जवाब चलते रहते हैं,
ज़िंदगी और मौत के बीच ये संवाद है।
एक कहती है जीना, दूसरी कहती है मरना,
पर दोनों ही सच हैं, दोनों ही जरूरी हैं।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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