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कारगिल के वीर की पुकार

कारगिल के वीर की पुकार

यह रचना उन सभी वीर सपूतों को समर्पित है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

तुम समय के शंख पर जयघोष के उजले प्रहर हो,
काटती है रात को जो उस किरण के वंशधर हो।

माँ तुम्हारा लाड़ला रण में अभी घायल हुआ है,
देख उसकी वीरता को शत्रु भी कायल हुआ है।
रक्त की होली रचाकर प्रलयंकारी दिख रहा हूँ,
माँ उसी शोणित से तुमको पत्र अंतिम लिख रहा हूँ।

हे माँ, सुन मेरी आखिरी विदाई का नारा,
रणभूमि में खड़ा है, तेरा यह पूत प्यारा।
तूने पाला मुझे, धर्म और देश के लिए,
आज वही धर्म निभा रहा हूँ, मैं मिट्टी के लिए।

ये धरती मेरी माँ, इसका अक्षुण्ण सम्मान बचाऊंगा,
इसकी रक्षा के लिए, मैं प्राणों की बाजी लगाऊंगा।
ये खून मेरा है, इसे मैं देश के लिए बहाऊंगा,
मिट्टी में मिल जाऊंगा, तिरंगे में लिपटकर आऊंगा।


मत रो माँ, मैं मर नहीं शहीद हो रहा हूं,
अमर हो जाऊंगा, मैं देश के लिए कुर्बान हो रहा हूँ।
तूने जो सपने देखे, वो मैं पूरे कर जाऊंगा,
अपने देश का नाम, रोशन कर वीरगति पाऊंगा।


ये तिरंगा मेरा है, इस पर प्राण न्योछावर करूंगा,
तुझे ये संदेश दे रहा हूँ, मैं आखिरी बार।
मैं भारत माँ का सपूत हूँ, और हमेशा रहूंगा,
मेरा खून इस धरती को सींचेगा, ये वादा कर रहा हूँ।


जय हिंद


"कमल की कलम से"
पंकज शर्मा
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)


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