"जीवन की सांझ के द्वार पर"

"जीवन की सांझ के द्वार पर"

सालों का साथ, जिंदगी का संगम,
बच्चों का जाना, घर हुआ शांत।
रह गए बस दो, है अंतिम पड़ाव,
साथ में हँसी, साथ में आँसू बहाव।


पति-पत्नी, दो जिस्म, एक जान,
बांटे हैं पल, हर सुख-दुःख समान।
अब बच्चों की जगह, यादें लेती हैं,
बीते हुए दिनों की, तस्वीरें देखते हैं।


सुबह की चाय, साथ में पीते हैं,
दोपहर का भोजन, बांटकर खाते हैं।
शाम की सैर, हाथों में लिए हाथ,
बातें करते हैं, हर पहलू की साथ।


रात को सोते हैं, इक दूजे के पास,
ख्वाबों में भी, रहते हैं आस-पास।
क्योंकि प्यार का बंधन है मजबूत,
टूटने का है ना अब कोई बहाना।


जीवन का सफर, धीरे-धीरे चलता है,
हर पल को संजोकर, आगे बढ़ता है।
साथ में जीना, और साथ में हैं हंसना,
अब सुंदर सा, यह जीवन है अपना।


अकेलापन का डर, अब हो गया है कम,
अब इक दूजे के साथ, का भरते हैं दम।
इस दौर में ही, समझ आता है यह सच,
प्यार-विश्वास का रिश्ता, है सच्चा साथ।


. स्वरचित, मौलिक एवं पूर्व प्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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