"मज़दूर की वेदना"
मजदूर दिवस पर राष्ट्र के असंख्य मजदूरों को समर्पित हमारी एक रचना ! इस रचना की मूल प्रेरणा रामधारी सिंह दिनकर जी की एक रचना से मिली थी।
मैं मज़दूर, ज़मीन का बेटा,
मेरे हाथों में है कर्म की लकीरें।
पसीने की बूंदों से सींचता हूँ,
धरती की कोख, बनाता हूँ स्वर्ग का द्वार।
देवों की बस्ती में क्या काम मेरा?
जहाँ चमकते हैं सिंहासन सोने के।
मेरा ठिकाना है मिट्टी की गोद,
जहाँ रचता हूँ मैं जीवन के सपने।
अगिनित बार मैंने धरती को,
स्वर्ग बनाया है अपने परिश्रम से।
खेतों में उगाए हैं अन्न के दाने,
बनाए हैं महल, मकान और मंदिर।
लेकिन मेरे भाग्य में लिखा है,
संघर्ष और तपना।
देवों की बस्ती में नहीं है जगह मेरी,
क्योंकि मेरा काम है बस मेहनत करना।
फिर भी मैं हार नहीं मानता,
क्योंकि मेरा मन है हौसले से भरा।
एक दिन ज़रूर आएगा वो,
जब मेरे सपनों का होगा सवेरा।
जब मज़दूर की मेहनत की होगी पहचान,
उसे मिलेगा वो सम्मान जिसका है वो हक़दार।
तब देवों की बस्ती भी झुक जाएंगी,
मज़दूर के चरणों में, है ये मेरा अनुमान।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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