थोड़ी सी शान्ति और माँ जैसा प्यार
डॉ रामकृष्ण मिश्रजीवन के सुन्दरतम होते उपहार।।
दैहिक विवशताएँ साधित समाधित हों
सृजन की अपेक्षाएँ शंकित न बाधित हों।
परिजन का सदाचरण प्रेरक अनुपूरक हो
खिल खिल उठता आयुष वर्धन आधार।।
श्रम का रूढ़ार्थ नहीं स्वार्थ के लिए होता
आशा का क्षेत्र तंग नहीं व्योम सा होता।
फिर भी संकल्पों की दृढता का धर्म तंत्र
रच देता कभी -कभी नूतन संसार।।
भय तो सीमाओं के पार हो भले लेकिन
अपने ही आँचल में आग जो लगे पल छिन।
फिर तो प्रलय जैसा टूटता पसरता है
काल के कपोल में समाता आचार।।
दैहिक विवशताएँ साधित समाधित हों
सृजन की अपेक्षाएँ शंकित न बाधित हों।
परिजन का सदाचरण प्रेरक अनुपूरक हो
खिल खिल उठता आयुष वर्धन आधार।।
श्रम का रूढ़ार्थ नहीं स्वार्थ के लिए होता
आशा का क्षेत्र तंग नहीं व्योम सा होता।
फिर भी संकल्पों की दृढता का धर्म तंत्र
रच देता कभी -कभी नूतन संसार।।
भय तो सीमाओं के पार हो भले लेकिन
अपने ही आँचल में आग जो लगे पल छिन।
फिर तो प्रलय जैसा टूटता पसरता है
काल के कपोल में समाता आचार।।
रामकृष्ण
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