प्रकृति से क्यों भागते भाई?
डॉ रामकृष्ण मिश्रयही धातृ बहु मना है
जहाँ अपना तन छना है।
संस्कारक शोधकर्ता सी
अतंद्रिल विपस्ना है।।
और क्या तुम चाहते भाई?
रम्य मोहक प्रात अपना
सान्ध्य सुखद विचित्र रसना।
सौरभेयी दृष्टि नित नव
रुचिर सृष्टि निदर्शना।।
तनिक खुद को आँकते भाई।।
सबलता सौदर्य मंत्रित
काल गतिमयता नियंत्रित
पृण्यश्लोकी चेतनाएँ
हो न पाएँ वृथा मंत्रित।।
आत्मबल से साधते भाई।।
जहाँ अपना तन छना है।
संस्कारक शोधकर्ता सी
अतंद्रिल विपस्ना है।।
और क्या तुम चाहते भाई?
रम्य मोहक प्रात अपना
सान्ध्य सुखद विचित्र रसना।
सौरभेयी दृष्टि नित नव
रुचिर सृष्टि निदर्शना।।
तनिक खुद को आँकते भाई।।
सबलता सौदर्य मंत्रित
काल गतिमयता नियंत्रित
पृण्यश्लोकी चेतनाएँ
हो न पाएँ वृथा मंत्रित।।
आत्मबल से साधते भाई।।
रामकृष्ण
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