संपत्ति का मौलिक अधिकार बहाल हो

संपत्ति का मौलिक अधिकार बहाल हो

प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
मूल संविधान में अनुच्छेद 31 में नागरिकों को संपत्ति का मौलिक अधिकार प्राप्त था।
यह अधिकार 1978 तक प्राप्त था।
आपातकाल में इंदिरा गांधी ने 44 वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा 1978 में इसे समाप्त कर दिया ।
42 वें संविधान संशोधन के द्वारा इस अधिकार को लगभग समाप्त करने की पहल 1976में इन्दिरा गांधी और communist सफरमैना ने की ।उसे 44वें संशोधन द्वारा जड़मूल से समाप्त किया अटल आडवाणी जी की साझेदारी वाली जनता पार्टी की सरकार ने।
इस तरह इस महापाप में सभी दल साझीदार है।
नेहरू जी और dr अंबेडकर आदि ने संविधान में नागरिकों को सात मौलिक अधिकार दिए थे।
इन्दिरा गांधी, मोरार जी, चरण सिंह और अटल आडवाणी आदि ने मिलकर सम्पत्ति का मौलिक अधिकार समाप्त कर दिया और अब केवल 6मौलिक अधिकार बचे हैं: 1.संविधान के समक्ष समता का अधिकार (जिसे मूढ़ लोग सम्पूर्ण समता बताते या समझते हैं).
2. संविधान के दायरे में स्वतंत्रता का अधिकार।
3. शोषण के विरुद्ध अपील दायर करने का अधिकार।
4. मजहब और religion की स्वाधीनता का अधिकार।
5. संस्कृति और शिक्षा का अधिकार 
6. संवैधानिक उपचार प्राप्त करने का अधिकार 

(सम्पत्ति का मौलिक अधिकार सब पार्टियों ने मिलकर छीन लिया है।)
यह आश्चर्यजनक बात है कि कोई भी पार्टी इसे पुनः बहाल करने की मांग नहीं कर रही है।
इस अधिकार के रहते राहुल गांधी के सभी भाषण असंवैधानिक सिद्ध होते ।
राहुल गांधी का सार्वजनिक रूप से मूल संविधान का विरोधी भाषण भाजपा राजनीतिक प्रचार के लिए तो कुछ काम में ले रही है परंतु मूलभूत बात वह भी नहीं उठा रही है कि हम संपत्ति का मौलिक अधिकार बहाल करेंगे।
इसका क्या अर्थ माना जाए ?
यह मानना तो असंभव है कि भाजपा में कोई भी इस विधिक स्थिति को नहीं जानता ।
अतः अगर भाजपा जानबूझकर इस मुद्दे को नहीं उठा रही है तो इसका अर्थ है कि वह भी समस्त लोकतांत्रिक राष्ट्रों में प्राप्त इस मौलिक अधिकार को भारत के नागरिकों को फिर से नहीं देना चाहती।
आपातकाल में इंदिरा गांधी द्वारा छीन लिए गए इस लोकतांत्रिक अधिकार को अन्य सब पार्टियां तो कांग्रेस कीलग्गू भग्गू होने से छीने ही रखना चाहती हैं परंतु क्या बीजेपी भी छीने रखना चाहती है ?
क्या इसका यह अर्थ लगाया जाए कि वस्तुत: वास्तविक लोकतंत्र में भाजपा की रुचि भी सीमित ही है ?
शासन के पास नागरिकों के समस्त जीवन को और जीवन तथा संपत्ति को नियंत्रित करने का संपूर्ण अधिकार रहे ,
यह तो हिरणकश्यप और कंस की परंपरा का विधान है जो इंदिरा गांधी ने 1978 में लागू किया और सभी पार्टियों की इस पर एक राय होना और इतनी बड़ी सर्वानुमति आश्चर्यजनक है ।
यह भी आश्चर्यजनक है कि एकम सनातन भारत या अन्य भारत मूलक नए छोटे विरोधी दल तक इस बात को नहीं उठा रहे हैं। शायद वे जानते ही नहीं हों।
क्या भारत के सभी राजनीतिक कर्मियों में भारत के मुख्य समाज के प्रति,
विशेष कर हिंदू समाज के प्रति,
गहरा परायाापन और उसके दमन की आकांक्षा गहराई में बैठी हुई है?:-
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