नियति करती नहीं अन्याय

नियति करती नहीं अन्याय

एक ईश के ही सारे हैं बंदे ,
नियति का सदा होता न्याय ।
सृष्टि में ऊॅंच नीच नहीं कोई ,
नियति नहीं करती अन्याय ।।
ऊॅंच नीच होता है भूलोक में ,
भूलोक में ही न्याय अन्याय ।
साक्ष्य व प्रमाण को छोड़कर ,
दिखता नहीं कोई भी उपाय ।।
निर्दोष भी हो जाते हैं दोषी ,
अपराधी बन जाते हैं निर्दोष ।
अपराधी खूब जश्न हैं मनाते ,
निर्दोष कैद में करे अफसोस ।।
भूलोक ब्रह्मलोक में है अंतर ,
भूलोक यथोचित नहीं न्याय ।
ब्रह्मलोक के ही न्यायालय में ,
नियति करती नहीं अन्याय ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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