मोबाइल का जमाना

मोबाइल का जमाना

कैसा आया मोबाइल का जमाना ,
आज बच्चा भी बन गया मर्दाना ।
पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता ,
बच्चा बच्चा है मोबाइल दीवाना।।
स्कूल जाना और क्रिकेट खेलना ,
घर का काम तो करता मनमाना ।
बचे समय में मोबाइल और टीवी ,
खाने पीने का भी नहीं ठिकाना ।।
मम्मी भी भूकती पापा भी भूकते ,
सुनकर भी तब बनते हैं अंजाना ।
कहने से भी सवाल नहीं हैं सुनते ,
तब अंत में बारी आती पिटाना ।।
आरंभ में बच्चा नहीं है सुंदरता ,
जीवन होता तब उसका बेकार ।
मोबाइल का यह आदत लगाना ,
अभिभावक को महा धिक्कार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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