वृद्धाश्रम की प्रासंगिकता

वृद्धाश्रम की प्रासंगिकता

आज टेलीविजन के संस्कार और आस्था जैसे चैनलों पर कथावाचक वृद्धाश्रम बनाने के लिए दान करने की बात करते हैं।
क्या वृद्धाश्रम में रहना/माता -पिता को रखना भारतीय दर्शन और संस्कार है?आज भारत में वृद्धाश्रम के प्रति कथावाचकों और समाज का एक बड़ा वर्ग जो बड़े शहरों में रहता है, उसकी आस्था वृद्धाश्रम के प्रति क्यों बढ़ती जा रही है ‌ यह एक विचारणीय प्रश्न है।
तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग का यह मानना कि यह पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति की देन है,कहकर सच्चाई से मुंह मोड़ लेते हैं। ‌‌ यह कहकर पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति को ग़लत नहीं ठहरा सकते हैं क्योंकि हो सकता है पश्चिमी देशों के लिए उनकी संस्कृति उनके लिए सही हो।
सच्चाई यह है कि हम स्वयं गलत है। आज से कुछ वर्ष पूर्व तक अपने वतन(गांव)से जूड़े थे। गांव से दूर जब शहरो में नौकरी करने जाते थे,तब माता पिता गांव में रहा करते थे। और हम समय-समय पर जब गांव जाते तो शहरी सभ्यता को भूल शाम में आम के बगीचे में और खेत की आरती पर बैठ गांव के दोस्तों के साथ घंटों गप करते। शहर से कमाकर कुछ पैसे पिताजी को देते तो वो कहते जा मां को दे आ। और मां कहती इसका मुझे क्या काम ।इसे तू अपने पास रख बाहर में काम आएगा। मेरा तो सबसे बड़ा दौलत तू है। जब खाना खाने बैठते मां हाथ से पंखा हिलाती। रात में जब सोने जाता मां एक कटोरी में तेल लेकर बैठ जाती और जबरन तेल मालिश करती।
पर आज। माता-पिता को दौलत की भूख इतनी बढ़ गई है कि बच्चे को डेढ दो वर्ष के होते ही उन्हें प्ले स्कूल में भेज दिया जाता है। स्कूल से आने पर घर में आया (नौकरानी) देख भाल करती है। बच्चा कूच और बड़ा होता है उसे बोर्डिंग में अध्धयन के लिए भेज दिया जाता है ।और तब उच्च शिक्षा के लिए /अच्छी नौकरी के लिए दो तीन वर्ष के लिए कोचिंग संस्थानों में भेज देते हैं।


और तब उच्च शिक्षा के लिए मेडिकल या इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिला हो जाता है जहां कम से कम चार वर्ष बीत जाते हैं।इस समय उसके उम्र २५के आस-पास होता है। सोचिए इन २५वर्षो में कितना दिन आपके पास रहा।जब वह आपके पास रहा ही नहीं तो आपके प्रति ममत्व उस बच्चे में कहां से आएगा। बच्चा भी आपका ही अनुकरण करेगा और स्वयं अधिक धनोपार्जन के पीछे दौड़ेगा। और आपको वृद्धाश्रम में रखा जाएगा। क्योंकि ममत्व और प्रेम उसे मिला ही नहीं। जिस समय उसे ममत्व की आवश्यकता थी उस समय उसे बोर्डिंग में भेजा गया था।
बच्चों को भविष्य बनाने के लिए शिक्षा की जितनी आवश्यकता है उतनी ही आवश्यकता माता -पिता के लाड़ प्यार की है। यदि बच्चे को समान रुप से शिक्षा और प्रेम मिलेगा तो बच्चे भी आपको स्नेह देंगे और तब वृद्धाश्रम की आवश्यकता नहीं रहेगी।

जितेन्द्र नाथ मिश्र
कदम कुआं, पटना

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