जग में पूंजीवाद बहुत शर्मिंदा है l

जग में पूंजीवाद बहुत शर्मिंदा है l

कैसे यह साहित्य अभी तक जिन्दा है !
मरने की भी फुर्सत जिसे नहीं मिलती l
बिन पैसे की काया कभी नहीं हिलती ll
धन लिप्सा से दूर अभावों में रहकर
अपना सब-कुछ त्यागे कोई चुनिंदा है l
ऐसे यह साहित्य अभी तक जिन्दा है !
हुई जिंदगी कोठरियों में कैद जहाँ l
पहरे पर डण्डा लेकर मुस्तैद वहाँ ll
जग की हर सीमा का बंधन तोड़ चला
नभ में उड़ता बन आजाद परिंदा है l
तब ही तो साहित्य अभी तक जिन्दा है !
बहुत व्यस्त सारी दुनिया दिन रैन अभी l
नहीं किसी को मिलता है चितचैन कभी ll
अग-जग की हर चकाचौंध से दूर खड़ा
अक्खड़ वेपरवाह कोई पोषिन्दा है l
इसीलिए साहित्य अभी तक जिन्दा है !
चितरंजन 'चैनपुरा'
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ