पल-पल तुम्हारी अदा देखते हैं

पल-पल तुम्हारी अदा देखते हैं

तुम्हारी तरफ ही सदा देखते हैं
पल-पल तुम्हारी अदा देखते हैं


नजरें झुका के - उठाने में तेरी
नजरों में हरपल बफा देखते हैं


समय दे समय पे जो आए नहीं,तो
घड़ी में है कितना बजा देखते हैं


भले दूर हो पर दिल में बसे हो
इसे प्यार की हम सजा देखते हैं


जहां बैठकर साथ सपने बुने थे
उन्हीं पत्थरों में व्यथा देखते हैं


अकेले में अक्सर बीते पलों के
एल्बम में जीवन कथा देखते हैं


हमें छोड़कर दूर जाने में साथी
हमेशा जय अपनी खता देखते हैं
*
~जयराम जय
'पर्णिका',11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर208017(उ.प्र.)
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