दक्षिण में दुकानों और मकानों पर हिन्दी में भी नाम-पट्टिका लगायी जाएँगी|

दक्षिण में दुकानों और मकानों पर हिन्दी में भी नाम-पट्टिका लगायी जाएँगी|

  • केरल के साहित्यकारों ने दिलाया विश्वास, साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ हिन्दी-मलयालम साहित्य समागम,सम्मानित हुए दक्षिण भारतीय साहित्यकार।
पटना, १८ मार्च। केरल में हिन्दी के प्रचार-प्रसार और हिन्दी-साहित्य के मलयालम अनुवाद पर पर्याप्त बल दिया जा रहा है। केरल के सभी शिक्षित लोग हिन्दी समझते और बोलते हैं। वहाँ हिन्दी से भी उतना ही प्रेम किया जाता है, जितना मलयालम से। अब दक्षिण भारत के राज्यों में दुकानों और मकानों पर हिन्दी में भी नाम पट्टिकाएँ लगायी जाएँगी।
यह आश्वासन केरल से आए १२ साहित्यकारों के एक समूह ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित 'हिन्दी-मलयालम साहित्य समागम' में,बिहार के हिन्दी-सेवियों को दिया। पर्यटक-समूह का नेतृत्व कर रहे हिन्दी और मलयालम के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा आर सुरेंद्रन ने कहा कि हिन्दी के माध्यम से सभी भाषाओं को जोड़ने का काम केरल में विशेष रूप से किया जा रहा है। देश के सभी राज्यों के साथ एक भावनात्मक एकता के लिए भी हिन्दी का उपयोग आवश्यक है। देश में भाषा की विभिन्नता के कारण, भावनात्मक एकता बाधित होती है। एक संपर्क भाषा यह बाधा दूर कर सकती है। इसलिए पूरे देश में हिन्दी का देश की मुख्य-भाषा के रूप में तीव्रगति से विकास किया जाना आवश्यक है। डा सुरेंद्रन ने केरल के विशेष सम्मान से सम्मेलन अध्यक्ष डा सुलभ को विभूषित किया।
इस अवसर पर सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने डा सुरेंद्रन समेत केरल के १२ कवियों और कवयित्रियों तथा झारखंड के तीन साहित्यकारों को सम्मानित किया। इनमे डा के सी अजय कुमार, डा एम के प्रीता, प्रो के जे रामाबाई, डा षीना ईपन, के राजेंद्रन, ओ कन्नीक्कणारन, सलमी सत्यार्थी, के पी सुधीरा, डा प्रसन्ना कुमारी एन, एम हरिदास, पी आई अजयन, डा मोहित कुमार दूबे, डा उषा, डा अमित कुमार सुमन और डा प्रदीप कुमार दूबे के नाम शामिल हैं।
समागम की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि यह प्रसन्नता का विषय है कि दक्षिण-भारत के प्रांतों में हिन्दी के प्रति प्रेम बढ़ा है। केरल में दक्षिण के अन्य प्रांतों की तुलना में हिन्दी की स्थिति सबसे अच्छी है। दक्षिण के नगरों में नाम-पट्टिकाएँ प्रायः स्थानीय भाषाओं में और अंग्रेज़ी में लिखी मिलती हैं। हिन्दी में नाम-पट्टिकाओं के अभाव में ऐसा प्रतीत होता है कि हम भारत में नहीं, किसी अन्य अपरिचित देश में आ गए हों। यह परितोष की बात है कि केरल के साहित्यकारों ने आश्वस्त किया है कि वहाँ की हिन्दी संस्थाएँ प्रेरित कर दक्षिण के दुकानों और मकानों पर स्थानीय भाषाओं के साथ हिन्दी में लिखी नाम-पट्टिकाएँ भी लगायी जाएँगी।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। सम्मानित कवियों और कवयित्रियों के अतिरिक्त वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, प्रो इंद्रकांत झा, डा जंग बहादुर पाण्डेय, कुमार अनुपम, डा पूनम आनन्द, सागरिका राय, चितरंजन लाल भारती, डा रेणु मिश्रा, जय प्रकाश पुजारी, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, ई अशोक कुमार, डा शालिनी पाण्डेय, डा प्रतिभा रानी, मीरा श्रीवास्तव, डा पुष्पा जमुआर, डा सुधा सिन्हा, रौली कुमारी, अटविंद अकेला, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, अर्जुन सिंह आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानंद पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। वयंग्य के वरिष्ठ कवि बाँके बिहारी साव, ई अवध बिहारी सिंह, अभय सिन्हा, दुःख दमन सिंह, बौद्ध अमर बोधी, डा प्रेम प्रकाश, डा चंद्र शेखर आज़ाद, दुःख दमन सिंह आदि प्रबुद्ध जन समागम में उपस्थित थे।
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