होली

होली

मधुकर वनमली की प्रस्तुति

रात चटकती खूब होलिका
चर चर जलती थी होली
आज भीड़ है मतवालों की
शोर मचाती है टोली
करता हूं मनुहार तुम्हारा
पहले रंग लगाउंगा
अब कैसा शर्माना सजनी?
अबकी अपनी है होली!
रंग लगाने से पहले हो
सजनी को मनुहार बड़ा
पल पल मान कराने वाली
गुस्से में भी प्यार भरा
झूठ मूठ का का मना करेगी
मीठी झिड़की दे देगी
बातों में उलझाकर अपने
जीभर खेलो है होली!
होली में हाला के जैसी
सूरत सजनी की भोली
मन मादकता भरने वाली
मिसरी के जैसी बोली
नयनों की मधुशाला छक कर
घूंट घूंट में पिया करो
भंग चढ़ेगी धूम मचेगी
नाचो गाओ है होली!
घेर चुकी मुरली वाले को
बृजबालाओं की टोली
असमंजस में बड़ी राधिके
श्याम नहीं सुनते बोली
मोदक जैसे मोहन मीठे
भिनक रहीं बालाएं सब
राधा कैसे रंग लगाए?
बीत रही जो है होली!
लाल गुलाबी टेसू रस की
पिचकारी चलती गोली
भीग रहा जितना यौवन यह
उतनी हीं कसती चोली
घोल भंग शरबत में देती
आज सजनिया साकी है
घर को मधुशाला करती है
मीठ बोली है होली!
मधुकर वनमाली
मुजफ्फरपुर बिहारस्वरचित एवं मौलिक
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