किसी किताब के मोड़े हुए वरक़ की तरह,

किसी किताब के मोड़े हुए वरक़ की तरह,

हम मुंतज़िर ही रहे, उसने फिर पढ़ा ही नहीं।


उसकी यादों में खोए, हर पल गुज़ारा,
उसने लौटकर देखा भी नहीं।


दिल की किताब में लिखी थी उसकी कहानी,
उसने पन्ने पलटे, मगर कुछ भी समझा ही नहीं।


मोहब्बत की राहों में भटके हम,
उसने रास्ता दिखाया ही नहीं।


उम्मीद की किरण जलाए रखी हमने,
उसने आँखों में उतारा ही नहीं।


बैठे रहे राह देखते, हर पल तरसते रहे,
उसने आकर पूछा भी नहीं, कि तुम क्यों सोए ही नहीं


दिल टूटा, उम्मीदें टूटीं,
उसने फिर भी दिल लगाया ही नहीं।


अब तो बस यही दुआ है,
उसे कभी भूलना पड़े, वो दिन कभी आए ही नहीं।


शायद वो लौटकर आए,
और कहे, "तुमसे प्यार है, अब कभी जाऊँगा ही नहीं।"


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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