रूक जाओ , मेरे बाद जाना !

रूक जाओ , मेरे बाद जाना !

=====( अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव)
आसान नही था समझाना,
जो कहते थे, रूक जाओ-
मेरे बाद जाना !
जाने की पीडा, ढोने वाले ,
देना चाहते थे,
फिर वही दर्द का खजाना !
अपने जाने की व्यवस्था मे-
लग गये,
जिसे था उम्र निभाना !
अपने आँखो को पोछने के लिए,
उठा लिया उन्होने,
फिर वही रूमाल पुराना !
कहते हैं, कौन किसको रोता है,
अतीत के पन्नों को पढते,
रोज जिनका होता है भीग जाना !
आज वह रूमाल फिर मुझे देकर,
वो चाहते हैं,
अपना दायित्व निभाना !
कभी-कभी हँसी आती है,
कौन किसको रोता है , सुनकर ,
बहुत-बहुत मुश्किल है समझाना ।
कल कविता ढल जायेगी,
न हम होगे, न यादें होगी,
हवा गायेगी ये तराना,
रूक जाओ , मेरे बाद जाना !
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