होली आई होली आई ,

होली आई होली आई ,

जन जन की खुशियाॅं लाई ,
अमीर गरीब सबको भाए ,
होली खेलें मन चित्त लाई ।
होली है खुशियों का त्यौहार ,
मत करो किसी से दुर्व्यवहार ,
आदर स्नेह का प्रतीक होली ,
सबसे करो तुम सद्व्यवहार ।
जागो जागो अब तुम जागो ,
नवयुग की ओर तुम भागो ,
त्यागो मन से किसी की बुराई ,
लट्ठमार वस्त्रफाड़ को त्यागो ।
नहीं है इसमें किसीकी भलाई ,
इसमें केवल बुराई ही बुराई ,
कुरीतियों को मन से त्यागो ,
द्वेष विषाद न फैलाओ भाई ।
खेलों रंग दिल मत दुखाओ ,
रंग अबीर भी खेलो खेलाओ ,
प्रेम भाईचारा मन में लाओ ।
आओ हम सब हाथ मिलाऍं ,
मिलकर साथ में कदम बढ़ाऍं ,
मानव मानव शृंखला बनाऍं ,
मानवता हेतु कदम बढाऍं ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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