"मन की दरार"

"मन की दरार"

मन के अंदर अचानक दरक गया कुछ,
बिखरा तो नहीं पर टूट गया कुछ।

आँखों में उतर आया अजीब सा सन्नाटा,
जैसे कोई हो गया अपना ही पराया।

दिल में उठी एक अजीब सी वेदना,
जैसे कोई हो गया घाव हो गहरा।

खोई-खोई सी नज़रें घूम रही हैं इधर-उधर,
जैसे तलाश रहा हो अपना खोया हुआ घर।

मन में उठ रहे हैं सवालों के तूफान,
लेकिन जवाब नहीं है किसी सवाल का।

बस है एक अजीब सी खामोशी,
जो सब कुछ बयां कर रही है।

आँखों में उतर आई एक धुंध,
जैसे टूट गया हो सपनों का बंध।

दिल में उठी एक अजीब सी वेदना,
जैसे खो गई हो अनमोल वस्तु अनजानी।

होठों पर आयी एक कड़वी मुस्कुराहट,
जैसे टूट गया हो जीवन का सार।

मन में उठी एक अजीब सी बेचैनी,
जैसे खो गया हो जीवन का अर्थ।

मन की दरार गहरी होती जा रही है,
और डर है कि कहीं यह टूट ना जाए।

समझ नहीं आया ख्वाब था कि सच,
पर मुट्ठी से अचानक सरक गया कुछ।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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