महाशिवरात्रि --नैष्ठिक व्रतचर्या

महाशिवरात्रि --नैष्ठिक व्रतचर्या

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)

महाशिवरात्रि की महिमा शैव धर्म में अत्यर्थ है और है यह अत्यन्त गौरवशाली शैव अन्तरंग व्रतचर्या । दुर्गासप्तशती ,तन्त्रोक्त रात्रिसूक्त में तीन विशिष्ट रात्रियाँ कण्ठोक्त हैं---
"प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा ।।"
तथोक्त तीन रात्रियाँ हैं --कालरात्र, महारात्रि एवं मोहरात्रि। कालरात्रि का लौकिक प्रतिरूप दीपावली की रात्रि है,मोहरात्रि का लौकिक प्रतिरूप श्रीकृष्णजन्माष्टमी की रात्रि है तथा महारात्रि ही लौकिक रूप में महाशिवरात्रि के रूप में प्रथित है।
ये तीनों रात्रियाँ त्रैगुण्य--सत्त्व, रजस् और तमस्--से संपृक्त हैं ।कालरात्रि तमःप्रधान है, मोहरात्रि रजोगुण-प्रधान है तथा महारात्रि किंवा महाशिवरात्रि सत्त्वप्रधान है।
महाशिवरात्रि अत्यंत नैष्ठिक अन्तरंग व्रतचर्या है,बाह्य आडम्बर-प्रदर्शन से सर्वथा वर्जित। उपवासपूर्वक रात्रिजागरण करते हुए रात्रि के चार प्रहरों में यथाविधि शिव के लिङ्ग-स्वरूप की उपासना विहित है। उपासना-विधि का विस्तृत विवरण शिवपुराण, कोटिरुद्रसंहिता, अध्याय 37,38 में देखना चाहिए। यहाँ संदर्भ-संकेत-पद्धति (By way of references)से ही चर्चा मुझे अभीष्ट है। यहाँ (शिवपुराण में)महाशिवरात्रि की तिथि माघ मास कृष्णपक्ष उल्लिखित है, जो शुक्लपक्ष से मास का आरम्भ मानने से फाल्गुन मास की कृष्णत्रयोदशी माघ मास की कही गई है।जहाँ कृष्णपक्ष से मास का आरम्भ मानते हैं उनके अनुसार यहाँ माघ का अर्थ फाल्गुन समझना चाहिए। अतएव, फाल्गुन कृष्णचतुर्दशी ही महाशिवरात्रि की तिथि सम्मत है।
अग्निपुराण, अध्याय 193 में भी महाशिवरात्रि-व्रत का अच्छा विवरण प्राप्त है। इस व्रत की महिमा इतनी है कि अनजाने भी घटित हो जाए, तो महान् फलदायक होता है। इस प्रसंग में शिवपुराण में एक भील (व्याध)की रोचक कथा विवृत है (द्रष्टव्य, शिवपुराण, कोटिरुद्रसंहिता, अध्याय 40 )।यहाँ उसका नाम 'गुरुद्रुह 'दिया है, जब कि पूर्वोक्त अग्निपुराण में उसका नाम 'सुन्दरसेन 'उक्त है। अनजान में घटित व्रत-चर्या से ही प्रसन्न होकर शिव जी ने उस व्याध को आशीर्वाद और वर प्रदान करते हुए कहा--"व्याध आज से तुम श्रृङ्गवेरपुर में उत्तम राजधानी का आश्रय ले दिव्य भोगों का उपभोग करो। तुम्हारे वंश की वृद्धि निर्विघ्न होती रहेगी। देवता भी तुम्हारी प्रशंसा करेंगे। मेरे भक्तों पर स्नेह रखनेवाले भगवान् श्री राम एक दिन निश्चय ही तुम्हारे घर पधारेंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम मेरी सेवा में मन लगाकर दुर्लभ मोक्ष पा जाओगे।" कहना न होगा, यही गुहराज था, जिससे दैवविपाकवश यथासमय राम ने मित्रता की और जिसके सेवक केवट ने राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार कराया। राम-भक्तों में गुहराज भी वरेण्य हुआ।
तो, ऐसी है महाशिवरात्रि-व्रत की महिमा।
अब देखिए, ऐसे महिमाशाली व्रत की विडम्बना जो वर्तमान में हो रही है। इस महामहिम अवसर पर लोगों ने ख्वाह-म-ख्वाह शिव-विवाह की मान्यता आरोपित कर दी है और बाजाब्ता भूत-प्रेतों के स्वांगों के साथ शिव-बरात निकाली जाती है। शास्त्रों में दाक्षायणी सती के साथ शिव-विवाह की तिथि चैत्रमास के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, रविवार, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र दी हुई है (देखें, शिवपुराण, अध्याय 18 )।सती के आत्मदाह के पश्चात् हैमवती पार्वती के साथ उनके विवाह की तिथि कालिकापुराण, अध्याय 44 ,श्लोक 41 में कण्ठोक्त है--
"माधवे मासि पञ्चम्यां सिते पक्षे गुरोर्दिने।
चन्द्रे चोत्तरफाल्गुन्यां भरण्यादौ स्थिते रवौ। ।"
अर्थात् वैशाख मास, शुक्लपक्ष, पञ्चमी तिथि गुरुवार के दिन जब चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र तथा सूर्य रोहिणी नक्षत्र में थे।
जाहिर है, पोंगे पंडों-पंडितों ने निपट लोभ और जघन्य स्वार्थवश महाशिवरात्रि को शिव-विवाह के रूप में प्रपंचित कर दिया है ।किंबहुना, बेकारी की मार झेलते नौजवानों को भी पाकिट गरम करने का एक खासा चोर दरवाजा हासिल हो गया।
यह तथ्य आज अत्यंत दु:खद और शोच्य है कि यथार्थ धर्म-चेतना का तेजी से लोप होता जा रहा है। धार्मिक अनुष्ठानऔर उत्सव भोंड़े तमाशों और बाजारू मसखरी (मस्ख़रगी)में तब्दील होते जा रहे हैं। धर्म के बीभत्सीकरण की गतिविधि को रोकने के लिए सच्चे धर्मज्ञों को मुक्तकण्ठ होने की आज सख्त जरूरत है।
"जय भारत, जय भारती " 
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