"रंजिशें छोड़ दो"
रंजिशें छोड़ दो अपनी, यह वक्त का तकाज़ा है,बंदिशें तोड़ दो दिल की, ज़ख्म ताजा - ताजा है।
नफरतों की आग में जलकर, राख हो गए हैं हम,
प्यार की धूप में खिलकर, सुगंधित हो जाएं हम।
गुस्सा और नाराज़गी, दिल को करते हैं बीमार,
माफ़ करने की भावना, लाए जीवन में बहार।
दिल नाज़ुक है किसका, किसका यह सख्त ज्यादा है,
यह साबित करने को यहां हर शख़्स आमादा है।
मन की कड़वाहट मिटाकर, गले लगें हम सब,
मिलजुल कर रहें, खुशियों से भरा हो हर पल।
आओ मिलकर बनाएं, एक बेहतर नया समाज,
जहाँ हो प्रेम, सदभाव, और भाईचारा का राज।
रंजिशें छोड़ दो अपनी, यह वक्त का तकाज़ा है,
बंदिशें तोड़ दो दिल की, ज़ख्म ताजा - ताजा है।
. स्वरचित, मौलिक एवं पूर्व प्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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