ज़िद कर रहे हैं

ज़िद कर रहे हैं

मुझ मूर्ख से पद छंद दोहा गीतिका ,
लिखने सिखने की जिद्द कर रहें हैं -
मेरे विद्वान मित्र परिचित सभी के सभी ,
मामूलीबुद्धी से ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं - |
मैं ईश्वरीय कृपा पर व्यक्त करता हूं ,
अपनी बीती आपबीती वहीं मेरी अविता -
मेरी लेखनीय गलतियों के झुंड में भी ,
आप ही तो खोज लातें है कविता - ||
गधे पे वेदों को लादते मिट्टी पलीद कर रहे हैं ,
बेवजह जन्मजात मूर्ख से उम्मीद कर रहे हैं -
मेरे विद्वान मित्र परिचित सभी के सभी ,
पद छंद दोहा लिखने कि ज़िद कर रहे हैं - ||
मैं अक्षर भक्षक निरक्षर मतिहीन जोकर हूं ,
करिया अक्षर भैंस बराबर बुद्धि का चोकर हूं -
शौक का सिपाही हंसी के हंस का नौकर हूं ,
हंसिए मुझ मूर्ख पर मैं विद्या का ठोकर हूं - ||
आपके हंसते मेरी गलतियां पूजा हो जाती है ,
जबकि अल्पबुद्धी को लोग सिद्ध कर रहे हैं - ?
मेरे विद्वान मित्र परिचित सभी मुझ मूर्ख से ,
पद छंद दोहा लिखने कि ज़िद कर रहे हैं -
मामूलीबुद्धी से बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहे हैं ||,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, 
विनय*बुद्धि,,,,,,,,,,,,,,,
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