" तौहफा"

" तौहफा"

खुशी से सरबोर उर्मिला के पाँव ही जमीन पर नहीं टिक रहे थे आज नव वर्ष के अवसर पर बरसों बाद इकलौते बेटे रोहन की घर मे उपस्थिति जो दर्ज हुई थी रोहन का अमेरिका से आना ही उर्मिला की खुशी का सबसे बड़ा कारण था . नव वर्ष के पार्टी की भव्यता देखते ही बनती थी पल भर मे उपहारों का ढेर लग गया अंत मे रोहन ने भी माँ के चरण छूते हुए उपहार स्वरूप एक खूबसूरत डिब्बी उनके हाथों मे रख दी. उर्मिला ने डिब्बी लौटाते हुए कहा- ' बेटा ! तू आ गया इससे बड़ा तोहफा मेरे लिए और कुछ हो ही नही सकता है तेरे सामने इन भौतिक उपहारों का मेरे लिए कोई मोल नहीं है '
इतना कहते कहते आँखों से माँ की ममता टपकने लगी. रोहन की आँखें भी नम हो गई. उसने माँ के आँसू पोछते हुए पुनः उस डिब्बी को माँ कीओर बढ़ाते हुए स्नेह भरे शब्दों मेआग्रह किया - ' ले लो मेरी प्यारी माँ ! हो सकता इसमें आपकी आशा से भी अधिक कोई खूबसूरत चीज हो'
अंततः उर्मिला को वह डिब्बी हाथों मे ले खोलनी ही पड़ी अंदर नजर पड़ते ही उर्मिला खुशी से चीख उठी और नयनों से अविरल स्नेह रस बरसने लगा.
डिब्बी खाली थी स्वर्णिम अक्षरों मे मात्र इतना लिखा था- ' माँ ! अब मै लौट कर नहीं जाऊंगा"
मीरा जैन
516,साँईनाथ कालोनी . सेठी नगर
उज्जैन .


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