इतिहास की परतें खुलेंगी, धीरे धीरे,

इतिहास की परतें खुलेंगी, धीरे धीरे,

इस्लाम का सच सामने भी, धीरे धीरे।
हैं बहुत से काले पन्ने, छिपा दिए गए,
उन पर भी रोशनी पड़ेगी, धीरे धीरे।

जिसने गढ़ा था मन्दिरों को, कौन थे,
ज्ञान का संचार करते, ऋषि कौन थे?
मृत्यु के बाद जीवन, जग को बताया,
सच के उपर झूठ की परतें, कौन थे?

हमने जगत को जीरो दी, काल साक्षी,
शब्द का ज्ञान- विज्ञान भी, काल साक्षी।
क्या है धरा क्या गगन, सप्त लोक क्या,
प्रकृति को भगवान माना, काल साक्षी।

दौड़ते थे ब्रह्म लोक तक, मुनिवर यहाँ,
ध्यान और विज्ञान पढ़ते, मुनिवर यहाँ।
ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा उठाते सदा,
अध्यात्म से मुक्ति बताते, मुनिवर यहाँ।

भू गगन वायू अग्नि नीर को, भगवान माना,
पीपल बरगद को भी समझा, भगवान माना।
मानव के भीतर मानवता, दानव को समझा,
इस धरा के हर रज कण को, भगवान माना।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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