बात दिल की मानकर तो देखो

बात दिल की मानकर तो देखो

बात दिल की मानकर तो देखो ,
दूसरे का दिल जानकर तो देखो ।
दिल तेरा भी यह बहल जाएगा ,
दिल समक्ष कान देकर तो देखो ।।
नहीं सुनोगे तुम दिल का जब ये ,
बनता काम भी बिगड़ जाएगा ।
करता रहेगा यह दिल अफसोस ,
शैतानी दिमाग वह कर जाएगा ।।
दिल की बात तुम सुनोगे जब भी ,
कुमार्ग कभी यह चलने नहीं देगा ।
मन मस्तिष्क में उभरे कुछ भी ,
दुर्विचार कभी यह पलने न देगा ।।
दिल चलता सदा धर्म मार्ग पर ,
मन सर्वत्र ही यह तो चलता है ।
बिगड़ जाता जब काम कोई भी ,
तब हाथ सदा ही वह मलता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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