अब जो कुछ भी मैं लिखता हूँ

अब जो कुछ भी मैं लिखता हूँ

अब जो कुछ भी मैं लिखता हूँ
हिय के भावों को बुनता हूँ।
उर में आते जो भाव नये
संतप्त हृदय के तार किये
तारों के कम्पन भावों से
झंकृत होते अक्षर बन कर
अक्षर-अक्षर से शब्द-निकर
भावों से शब्द गढ़े जाते
शब्दों से सजती कविताएँ ।
भावों से रस के सुगम बंद
मात्रा-वर्णों से विविध छन्द
छंदों से बनती कविताएँ
फिर कविताएँ भी मुक्तछन्द।
मुक्त छन्द के विविध भाग
भागों में फिर से विपुल राग
रागों के सरगम शब्दों में
शब्दों से बनती कविताएँ
छन्दों से बनती कविताएँ।
----विधु शेखर मिश्र की कलम से
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