बहुत बेदर्द बेवफ़ा होती हैं तितलियाँ,

बहुत बेदर्द बेवफ़ा होती हैं तितलियाँ,

रंग फूलों का चुरा लेती हैं तितलियाँ।
हैं बहुत शौकीन सजने सवंरने की भी,
रंगों से खुद को सजा लेती हैं तितलियाँ।


बहुत बेहया भी हुआ करती हैं ये तो,
फूल फूल पर बैठा करती हैं तितलियाँ।
है बहुत प्यारी सी मनोहर छवि इनकी,
सबको दिवाना बना देती हैं तितलियाँ।


जानते हैं पुष्प, इनकी बेवफ़ाई के क़िस्से,
रंग चुरा कर इनका, मुस्कराती हैं तितलियाँ।
पुष्प की चाहत लुटाना, किसी की ख़ातिर,
बेहयाई की इन्तिहां, होती हैं तितलियाँ।

अ कीर्ति वर्द्धन
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