क्या मैं जीवित हूँ ?

क्या मैं जीवित हूँ ?

श्री ज्योतिन्द्र मिश्र
क्या मैं जीवित हूँ। यदि हूँ तो नव अम्बर अर्थात नवम्बर के वितान तले आइये और ... और बैंक की शाखा में चलकर हाजिरी दीजिये , लिखकर दीजिये बात कीजिये बैठकर उठकर खड़े रहकर बताइये कि आप जीवित हैं या पुनर्जीवित हुए हैं या कितना जीवित है । कितना मरे हुए हैं कितना प्रतिशत जीवित हैं। खुद की खातिर जीवित हैं या परिवार की खातिर जीवित हैं। टोटली मृत हैं या टोटली जीवित हैं।
हर हाल में साबित करना होगा । कांपते कलम से फार्म भरिये । सारी सूचनाएं सुस्पष्ट अंकित कीजिये । पिछले साल वाला सूचना काम नहीं आएगा। नव अम्बर में पुनर्नवा हूजिये ।
बहर हाल
मन्दिर जाने की तर्ज पर खुद को जीवित साबित करने के लिए बैंक जाने की तैयारी पूरी की। पिछले 9 वर्षों से श्री वैद्यनाथ शर्मा जी मेरे सारथी बने हुए हैं। गुरु शिष्य परम्परा के ऐसे सुयोग्य और विश्वसनीय सारथी की यह शायद अंतिम पीढ़ी है। बैंक ले जाना । घर पहुंचा देना या व्यवस्था करना इन्हीं के जिम्मे है। पूर्व जन्म का कोई सम्बन्ध रहा होगा । साल भर मरा मरा रहता हूँ तो एक। दिन बैंक पहुंचाकर जीवित साबित करता देते हैं।
पेंशन दाता को विश्वास दिलाना भी जरूरी है ।
सरकार को हम पर विश्वास नहीं रह गया है। उसका कारण हम लोग ही हैं। पढ़ लिख कर , कम्पीट कर सरकारी सेवक बनकर आये हुए कर्मियों को आफिस में आते ही मशीन पर अंगूठा लगाना पड़ता है । आपके टेबुल के सामने आपकी गतिविधि पर नजर रखने के लिए आपको कैमरे की जद में रखा जाता है। क्यों ???
क्योंकि आप पर सरकार को विश्वास नहीं है।
आप समय के पावन्द नहीं हैं। आप का ज़मीर साफ नहीं है। आप अपना थैला भरने के लिए कब कितना हजम कर जाइयेगा इसका ठिकाना नहीं है। आप भले ही आवेदन में श्री मान का विश्वास भाजन लिखते रहिये ।बार बार लिखते रहिये लेकिन आप विश्वास भाजन नहीं हैं।और जहाँ विश्वास का संकट हो । वहां कैसी सरकार होगी । कैसा राज्य होगा । कैमरे और पंचिंग मशीन ही मनुष्यता की परिभाषा को री डिफाइन करेंगे। हमें लाइफ सर्टिफिकेट देना ही होगा । चाहे हम पूरी तरह मर ही गए क्यों न हों।
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