हिन्दी के महाकवि थे 'मोहन प्रेमयोगी', आचार्य रामचंद्र शुक्ल से धन्य हुई हिन्दी:-डा अनिल सुलभ
- साहित्य सम्मेलन में मनायी गई जयंती, लघुकथा-पुरुष सतीश राज पुष्करणा किए गए याद,हुई लघुकथा-गोष्ठी
पटना, ४ अक्टूबर। महाकाव्य 'महाशक्ति', 'मेनका', 'रास-रचैया' और 'जागरी वसुंधरा' जैसी कालजयी कृतियों के रचनाकार ब्रजनंदन सहाय 'मोहन प्रेमयोगी' हिन्दी-साहित्य के एक ऐसे विनम्र महाकवि हैं,जिन्होंने स्वयं को प्रचार से दूर रखते हुए, वाणी की एकांतिक-साधना करते रहे। वहीं हिन्दी के महान समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखकर 'हिन्दी' को धन्य कर दिया।
यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि प्रेमयोगी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, किंतु कविता और हिन्दी उनकी आत्मा में समायी हुई थी। जीवन-पर्यंत हिन्दी के ध्वज-वाहक बने रहे। पूरे संसार में हिन्दी का संवर्धन हो, इसके लिए सचेष्ट रहे। उनकी भाषा प्रांजल, मधुर और मोहक थी।
इस अवसर पर बिहार में लघुकथा-आंदोलन के पुरोधा डा सतीश राज पुष्करणा को भी आदरपूर्वक स्मरण किया गया। डा सुलभ ने उन्हें'लघुकथा-पुरुष' की संज्ञा देते हुए, कहा कि यह उनकी ही देन है कि बिहार में अनेको लेखक 'लघुकथा' की ओर प्रेरित हुए और इस विधा को बल प्रदान किया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि पुष्करणा जी उनके साहित्यिक-सहयोगी रहे तथा पत्रिका-प्रकाशन में भी बड़ा योगदान दिया। उन्होंने लघुकथा में अपने योगदान से देश में अपना नाम कमाया। वे लघुकथा में नए आयाम जोड़े।
सुप्रसिद्ध लघुकथाकार और पत्रकार डा ध्रुव कुमार ने कहा कि पुष्करणा जी ने चार दशकों से अधिक समय तक लघुकथा की साधना की। उन्होंने आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री समेत अनेक विद्वानों से 'लघुकथा' के आयामों पर चर्चा की और इसे आंदोलन का रूप प्रदान किया।
महाकवि प्रेमयोगी की विदुषी पुत्री और प्राध्यापिका डा प्रतिभा सहाय ने कहा कि प्रेमयोगी जी पद-प्रतिष्ठा और यश की लिपसा से निर्लिप्त एक साधु साहित्यकार थे। वे साहित्य में राष्ट्र-प्रेम और संस्कृति की रक्षा के पक्षधर थे। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, बच्चा ठाकुर, महकवि के पुत्र डा योगेशकृष्ण सहाय, पुत्रवधू रुपम सहाय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, नूतन सिन्हा, प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा पुष्पा जमुआर ने तारीफ़' शीर्षक से, विभारानी श्रीवास्तव ने '-अंधेरे का सच' , जयप्रकाश पुजारी ने 'औक़ात', डा पूनम आनन्द ने 'क़ीमत' , मधुरेश नारायण ने 'आत्म बोध' , डा पूनम देवाने 'विश्वास' , सिद्धेश्वर ने 'अंतिम प्रश्न', चैटरंजन भारती ने 'व्यवहार की बात', कमल किशोर 'कमल' ने दुआ', ई अशोक कुमार ने धौंस', अरविन्द अकेला 'राष्ट्रपति पुरस्कार',अर्जुन प्रसाद सिंह ने ख़िताब' तथा अरुण कुमार पासवान ने 'मेरे साहब' शीर्षक से, अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।अवध बिहारी सिंह, नीता सिन्हा, विभा अजातशत्रु, संजना कुमारी, डा चंद्र शेखर आज़ाद, दुःख दमन सिंह, दिगम्बर जायसवाल, अमन वर्मा,राजीव कुमार मेहता आदि प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
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