फिर हिन्दी-दिवस आय़ा

फिर हिन्दी-दिवस आय़ा

मार्कण्डेय शारदेयः
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फिर उत्सव का मौसम आया
फिर सत्यनारायण कथा होगी
फिर पूजा-आरती होगी
फिर अंगरेजीयत व्यासगद्दी सँभालेगी
फिर पुल पर पुल बनेंगे
फिर कसमेवादे का दौर चलेगा
फिर भजनमण्डली का जुटान होगा
फिर चुन-चुनकर लोग निहाल होंगे
फिर माँ का कलेजा गुब्बारा बनेगा
फिर सपने अपने लगेंगे
टायँ-टायँ फिस्स.....खेल खतम,पैसा हजम।
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