हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए बिना देश की प्रगति असंभव : माधव

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए बिना देश की प्रगति असंभव : माधव

  • गया में डॉ विवेकानंद मिश्र पथ स्थित आयुर्वेदिक चिकित्सा भवन में कौटिल्य मंच के तत्वावधान में हिंदी दिवस मनाया गया।
सभा की अध्यक्षता बिहार के जाने-माने साहित्यकार और विभिन्न शैक्षिक सामाजिक संगठनों से जुड़े राधामोहन मिश्र माधव ने की । अपने संबोधन में माधव जी ने सरकार से हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने में हो रहे विलंब पर चिंता व्यक्त की जबकि 14 सितंबर 1947 को संविधान सभा के निर्णय का याद दिलाते हुए कहा कि राष्ट्रभाषा हिंदी ही संवैधानिक राजभाषा अर्थात देश की आधिकारिक भाषा होगी। किंतु सरकारी इच्छा शक्ति की कमी के कारण आज तक यह वही का वहीं रह गया। जबकि अब तो हिंदी की वैश्विक पहचान है मोदी जी जैसे कुशल सशक्त नेतृत्व है दृ इच्छा इच्छा शक्ति वाली सरकार है। तो अब अब शीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता है। अच्छा नहीं लगता यह भाषाभाषियों की दृष्टि से देश की
विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े कौटिल्य मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर विवेकानंद मिश्र ने कहा कि हिंदी देश के जन-जन की यह भाषा आज भी अपेक्षित है जबकि राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी इसे समुचित स्थान मिलनी चाहिए है।
मगध विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो उमेशचंद्र मिश्र शिव ने हिंदी को विश्व की अग्रणी समृद्ध भाषा बताया। यह राजभाषा की अधिकारिणी है।
आल इंडिया जुलौजी कांग्रेस के अध्यक्ष एवं पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो बी एन पांडेय ने कहा कि हिंदी में वैज्ञानिक एवं तकनीकी पुस्तकों की रचना एवं अनुवाद होना चाहिये।
मगध विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो विपिनविहारी द्विवेदी ने कहा कि हिंदी में तुलसीदास सूरदास कबीर दास जैसे रचनाकार रामचरितमानस जैसा महान काव्य है। यह राजभाषा पद की पूर्ण अधिकारिणी है।
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पूर्व प्राचार्य डा रामसिंहासन सिंह ने हिंदी प्रेमियों को हिंदी की गरिमा बताते हुए कहा कि हिंदी सर्वसमर्थ और ललित भाषा है। सिद्धनाथ मिश्रा अश्वनी तिवारी डॉक्टर ज्ञानेश भारद्वाज एवं शिवचरण डालमिया ने कहा कि हिंदी इसमें प्रभूत परिमाण में साहित्य सृजन हुआ है।
कतिपय हिंदी प्रेमियों ने इंटरनेट संदेश भेजकर उत्साह वर्धन किये। ऐसे लोगों में अनेक सामाजिक संगठनों के अध्यक्ष श्री कृष्ण वल्लभ शर्मा योगीराज रवि भूषण पाठक दिव्यरश्मि के संपादक डा राकेशदत्त मिश्र प्रो जयदेव मिश्र प्रो एच ओ आर्य डा सुधांशुशेखर मिश्र डा सच्चिदानंद पाठक कवयित्री प्रेमा मिश्रा योगेश्वर त्रिवेदी श्यामाशंकर त्रिपाठी विवेकानंद शुक्ला आदि हैं।प्रमुख उपस्थित हिंदी प्रेमियों के नाम --- डा किरण पाठक डा मृदुला मिश्रा रुकमणी पाठक रविभूषण भट्ट शंभू गिरी नीरज वर्मा पिंकू कुमारी विनयलाल टाटक किरण पांडेय मोहम्मद सद्दाम भोला सिंह पंडित निशिकांत मिश्रा नीलम कुमारी पवन मिश्रा रंजीत पाठक कविता राउत आचार्य अभय पाठक बालेंद्र पांडेय अनीता देवी दीपक पाठक पीयूषा गुप्ता आदि हैं। भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्षआचार्य बालमुकुंद मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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