मुखौटों का शहर
बैठा हर शख़्स झूठ का पर्दा चढ़ाये,यह तो मुखौटों का शहर है जनाब।
यह इक भ्रमजाल है , ढांप लेता है,
शख्सियत चाहे जितनी हो ख़राब।
चारों तरफ़ देखो मुखौटा लगाए,
बदहवास हर इंसान घूम रहा है।
वो यथार्थ की दुनिया को छोड़कर,
मायावी दुनिया में क्या ढूंढ़ रहा है?
भ्रमित कहीं तेरे चेहरे की यह,
अपनी पहचान भी न खो जाए।
आस में इतने मुखौटे ना बदल,
सामाजिक थोड़ी शोहरत पाए।
मुखौटों की ओटों में पहचानो,
कौन अपने एवं कौन पराए हैं।
पहचानों हितैषी के मुखौटे में,
पाखंडी मित्र तो नहीं आये हैं।
मुस्कुराते हुए मुखौटे लगाकर,
आज हर इंसान कुछ छुपता है।
विद्वेष एवं घृणा ग्रसित ह्रदय हैं,
फिर भी आत्मीयता जताता है।
कहकहों में छुपा लेता है,
यह अश्कों का समुन्दर।
होशियार है, ढांप देता है,
सच का चेहरा, मुखौटा।
आधुनिकता के इस मुखौटे ने तो,
इस समाज को अत्यंत भरमाया है।
उसके इस मायावी झांसे में जाने,
क्यों हर इन्सान आज आया है ?
गरीब आज भी यथावत ही क्यों दिखता है,
संभवतः वह मुखौटा खरीद नहीं सकता है।
क्योंकि वो अपने पैसे के अभाव के कारण,
स्वांग और अभिनय से नहीं कर सकता है।
देखता है क्यों हैरान हो, ये आइना मुझे रोज,
ढूँढ़ता है, मुखौटों के शहर में चेहरा, मुखौटा।
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com