"तेरा अहम"

"तेरा अहम"

पंकज शर्मा

अहम की ओढ़ कर चादर,
फिरा करते हैं हम अक्सर,
भरम में ही जीते रहते हैं,
सत्य जानने का खो देते अवसर।


अहम है कि मैं हूँ सबसे अच्छा,
सब कुछ है मेरे पास,
पर ये सब है मृग मरीचिका,
सब यही धरा रह जाएगा।


अहम है कि हूं सबसे शक्तिशाली,
लूँगा मैं सब कुछ जीत,
पर ये ज़िंदगी है एक खेल,
और ये सब खेल ख़त्म हो जाएगा।


अहम है कि मैं हूँ सबसे सुंदर,
सबकी निगाहें करती मेरी क़दर,
पर ये सब ज़िंदगी है एक धोखा,
और ये धोखा उजागर हो जाएगा।


अहम अनगिनत संबंधी मेरे,
रहूंगा ना मैं कभी उदास।
मूंढ़मति तू यह जान ले,
साथ कोई नहीं जाएगा।


अहम है कि मैं हूँ सबसे अमीर,
सब कुछ खरीद लूँगा,
पर जब भी तेरा बुलावा आयेगा,
ऊपर खाली हाथ ही तू जाएगा।


अहम अहम से टकराते,
बिखरते और चूर भी होते,
मगर फिर भी अहम के हाथों,
हम कितने मजबूर होते?


जला के राख कर देता है,
जब हद से बढ़ जाता है तेरा अहम,
मिट्टी और खाक कर देता है,
जब हो जाता है तुझे इसका वहम,
.
स्वरचित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ