प्यासा कौवा चोंच खोलकर,देख रहा है नल

प्यासा कौवा चोंच खोलकर,देख रहा है नल

प्यासा कौवा चोंच खोलकर,देख रहा है नल।
गर्मी से सुखे अधरों को मिल अरे कुछ जल।।
पर धरती खुद है सुनी-सुनी,वह भी बड़ी विकल।
आसमान है सुना-सुना ये सुखा-सुखा बादल।।
प्यास लिए सब तड़प रहा है होकर अति निर्बल।
बिन पानी सब पानी-पानी है पानी नहीं रसातल।।
जल है जीवन जान समझ लो इसको मेरे बौवा।
नहीं तो हो जायेगा जीवन सचमुच एक दिन हौवा।।
तड़प-तड़प कर प्राण रहेगें ब्राह्मण हो या नौवा।
मुंह बाए सब रह जायेंगें जैसा की है ये कौवा।।
         ---: भारतका एक ब्राह्मण.
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