इंतजार

इंतजार

इंतजार जिनका था मुझे ,
आ सके नहीं वे अबतक ।
झुलस रहा याद में उनके ,
याद करूं उन्हें कब तक ।।
कब तक याद करूं उन्हें ,
जब उन्हें हूं मैं याद नहीं ।
चीख रहा याद में कबसे ,
वे तो सुनते निनाद नहीं ।।
कब तक याद करूं इन्हें ,
अंततः एक दिन भूलूंगा ।
रह जाएंगे सपने बनकर ,
सपनों में ही मैं झूलूंगा ।।
काल्पनिक हैं सपने झूले ,
सच ही आज कल्पना बना ।
क्यूं हमसे वे दिल लगाकर ,
बन गए आज लोहे की चना ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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