स्लोगन
1 हम बच्चे पढ़ लें लिख लें ,
संग साथ पढ़ना सीख लें ।
न पकड़े कोई हाथ हमारा ,
याद कर लिखना सीख लें ।।
2 दूर से आते पढ़ाने शिक्षक ,
पढ़ाकर दूर ही वे जाते हैं ।
शिक्षक ही हमारे गुरु होते ,
जिन्हें सादर शीश नवाते हैं ।।
3 बड़ों के आदर करना सीखें ,
यही तो है शिष्टाचार हमारा ।
उनकी बातों को हम गुण लें ,
यही तो प्रिय संस्कार हमारा ।।
4 संस्कार से ही शिक्षा मिलता ,
शिक्षा से संस्कार जरूरी नहीं ।
संस्कार बिन अहंकार टपके ,
संस्कार जरूरी मजबूरी नहीं ।।
5 शिक्षा से बड़ा संस्कार होता ,
मातापिता के ढोते हैं कांवर ।
उन गोरों की तुच्छ है गोराई ,
उनसे बेहतर बेटे हों सांवर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित स्लोगन
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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