माॅ॑

माॅ॑

(मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं)

जीवन भर कभी समझ सका ना, प्यार अथाह तुम्हारा माता

लुटाती रहती निशि-दिन ममता, आंसू आंखों में कभी न आता

कितने पत्थर तूने भगवान वनाये

कितने देवी-देवताओं पर प्रसाद चढाये

साधु-संतों से कितने आशिष पाये

अगणित स्थानों पर शीश झुकाये

जब अपने हाथों में मुझको पाया

आलिंगन,चुंबन,प्यार मेघ वर्षाया

अनमोल रत्न हृदय,कंठ चिपकाया

तूने मानो बैकुंठ का हर वैभव पाया

तू गूंगे मुख - अधर स्वर वाणी भर लायी

अविरल जीवन जीने का अभ्यास करायी

जब जब मैंने रुदन किया या भूख सतायी

व्यथित, छोड़ सभी, मेरे पास दौड़ी आयी

खुद गीले में सोयी, सूखे आॅ॑चल मुझे सुलाया

पिताजी के गुस्से से , जाने कितनी बार बचाया

संस्कार दिए, दुनियाॅ॑ का अच्छा इंसान बनाया

जग में रोशन नाम करूं,शुभाशीष तिलक लगाया

कंटक पथ विपदाओं में,साहस से जीना सिखलाया

अमृत ज्ञान दिया,जब जब अज्ञान तिमिर गहराया

करुणा छलकी नयनों से,जब संताप में मुझको पाया

प्रचंड शक्ति बन उबारा मुझको, अनहोनी से सदा बचाया

विधाता से बड़ी है तू, त्रिलोक्य में तुझसे बड़ा न कोई माॅ॑

युग युगांतर जब भी जन्मू,तेरे ही आंचल की छाया पांऊं माॅ॑

मैं दुनियाॅ॑ की हर खुशी, तेरे पावन चरणों में रख पाऊं माॅ॑

विनय करूं तुझे क्षण एक न भूलूं, ऐसा अमर वरदान मुझे दे माॅ॑

मेरा गात रहे गोदी में, हाथ रहे सर माथे पर, ऐसा विश्वास मुझे दे माॅ॑
जय माॅ॑ ,मातृ देवो भव


चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
(ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक) अहमदाबाद ,गुजरात
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