चांदनी रात का...

चांदनी रात का...

सुहानी रात में दिल डोल रहा है।
चाँद की चाँदनी से मचल उठा।
और चाँद सा चेहरा खिल उठा।
जिसे देख चाँद भी शरमा गया।।


आज बाग में तुझे देखकर।
फूल पत्ती पेड़ झूल उठे है।
जो प्रेमी प्रेमिका को लुभा रहे।
और जनत में उन्हें बुला रहे।।


मोहब्बत करने का अंदाज अलग है।
मेहबूबा को बाग में घूमना अलग है।
फिर उसे दिलसे अपनाना अलग है।
सच में रात में मिलना भी अलग है।।


जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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