सफर

सफर

जन्म से मौत तक ,
पत्नी से सौत तक ,
कट जाए ये जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
बचपन में पढ़ लें ,
कोई कहानी गढ़ लें ,
बीत जाय जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
बचपन से किशोर हुए ,
तनमन में बहुत शोर हुए ,
काबू किए मन को ,
सफर इसी का नाम है ।
यहीं से डगर चुने ,
भला बुरा नगर चुने ,
बीता लिए जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
जब हम जवान हुए ,
महत्वपूर्ण जुबान हुए ,
गिरते उठते बीती जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
युवा के बाद प्रौढ़ हुए ,
अपनों बीच और हुए ,
पहचान बनाई जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
प्रौढ़ बाद आया बुढ़ापा ,
टूटे दांत खो गई आपा ,
वंदगी मंदगी में जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
हाथ पांव हो गए बंद ,
अंतर्मन में चलता द्वंद्व ,
मुश्किल हुई ये जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
स्थाई रूप से पकड़े खाट ,
जोह रहे हैं मौत का बाट ,
हार गए अब तो जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
न जीत सकी यह जिंदगी ,
मिट चुकी अब ये जिंदगी ,
पता न कैसे कटी जिंदगी ,
सफर इसी का नाम है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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