बदल गया वह वक्त पुराना पढ़ने का,
जितना पढ़ना उससे ज़्यादा गुनने का।शिक्षक हैं ना शिक्षार्थी शिक्षा मंदिर में,
चला गया वह दौर पुराना गुरूजनों का।
शिक्षा से सर्वांगीण विकास की बातें होती थी,
ब्रह्माण्ड के गूढ़ रहस्यों की चर्चाएँ होती थी।
भी गगन वायु अग्नि नीर से मिल भगवान बना,
प्रकृति जीवन आधार, संरक्षण बातें होती थी।
गुरूकुल शिक्षा, प्रेम त्याग समर्पण की थी,
गुरूजनों का आदर संस्कार संरक्षण की थी।
खो गयी वह सोच पुरानी, चरित्र निर्माण लक्ष्य था,
सभ्यता अनुसरण, राष्ट्र- धर्म के पोषण की थी।
नये दौर में शिक्षा के अर्थ बदल गये हैं,
सब शिक्षा के मकडजाल में फँस गये हैं।
वातानुकूलित भवनों में शिक्षालय बनते,
प्रमाण पत्र पाना शिक्षा के लक्ष्य बन गये हैं।
समान शिक्षा लक्ष्य हमारा नारा है,
यथार्थ धरा पर यह कितना बेचारा है।
सुविधाओं से युक्त भवन अमीरों हेतु,
टाट पट्टी पर गरीब वक्त का मारा है।
डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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