बालमन
बच्चों हेतु लिखना चाहो, बस बच्चा बनना पड़ता है,
छोड़ छाड़ कर झूठ कपट, बस सच्चा बनना पड़ता है।
आओ खेलें आंख मिचौली, आओ रस्सी कूद करें,
बच्चों के संग खेल खेल में, गुड़िया को मनाना पड़ता है।
तुतलाती सी बोली में भी, बच्चों के संग बात करें,
कभी-कभी तो घोड़ा बनकर, उन्हें घुमाना पड़ता है।
झूठ मुठ में रोटी खाना, झूठ मूठ का पीना पानी,
बात बात में संस्कारों का, सार सिखाना पड़ता है।
कभी कहानी वीर शिवा की, राणा की तलवारों की,
रामायण में कथा राम की, उन्हें सुनाना पड़ता है।
कैसे खेले गोप गोपियां, वृंदावन के कुंजों में,
ग्वाल बाल संग कान्हा का, खेल दिखाना पड़ता है।
गुरुजनों की सेवा करना, मात पिता का आदर मान,
संस्कार संस्कृति क्या होती, पाठ पढ़ाना पड़ता है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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