बिहार के प्रेमचंद्र थे रेणु, अद्भुत प्रतिभा के व्यंग्यकार थे राजहंस : डॉ अनिल सुलभ

बिहार के प्रेमचंद्र थे रेणु, अद्भुत प्रतिभा के व्यंग्यकार थे राजहंस : डॉ अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ जयंती समारोह ।

पटना, ५ मार्च। भारतीय लोक-मानस को आंतरिकता के साथ समझने वाले हिन्दी के दो कथाकारों का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है। वे हैं 'प्रेमचंद्र' और 'रेणु'। प्रेमचंद्र की तुलना में रेणु ने अवश्य कम लिखा, किंतु प्रतिभा में दोनों समान थे। रेणु बिहार के प्रेमचंद्र हैं, इसमें कोई संशय नहीं। दूसरी ओर विश्रुत व्यंग्यकार डा रवीन्द्र राजहंस एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने व्यंग्य-साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। वे सम्मोहित करनेवाली कटाक्ष-कला से संपन्न एक सिद्ध और प्रसिद्ध कवि थे।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मेजर बलबीर सिंह सभागार में आयोजित जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन-अध्यक्ष डा
अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, महान कथा-शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु, सीने में अग्नि को पोषित करने वाले,क्रांति-धर्मी कथाकार थे। उनका लेखन और जीवन, दोनों ही, बहु-आयामी था। वे जीवन भर संघर्ष-शील रहे। देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में ही नहीं, स्वतंत्र भारत में भी वे पीड़ित-मानवता के लिए लड़ते-लिखते रहे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह भोगे हुए यथार्थ पर आधारित था और जो लिखा उसे जिया भी।उनके साहित्य में ग्राम्य और आंचलिकता की प्रधानता रही। उनके बहुचर्चित उपन्यास 'मैला आँचल' को, साहित्यालोचन के शिखर पुरुष आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने हिन्दी का 'श्रेष्ठतम आँचलिक उपन्यास' माना था। नलिन जी की यही टिप्पणी रेणु जी के साहित्यिक यश-धारा की उन्नयन-बिंदु सिद्ध हुई और रेणु जी हिन्दी-संसार में छा गए।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन की उपाध्यक्ष प्रो मधु वर्मा ने कहा कि राजहंस जी की कविताओं ने समाज के हर पक्ष को छुआ है। उनकी व्यंग्य-रचना- "कहाँ है भला आदमी?” को बहुत प्रसिद्धि मिली । उनकी दृष्टि में, जो दूसरों का कष्ट समझता हो, वही भला आदमी हो सकता है। समाज में भला आदमी की खोज सदा जारी रहती है।
डा शंकर प्रसाद ने अपने संस्मरणों के ज़रिए रेणु जी के विराट व्यक्तित्व को चित्रित किया। उन्होंने कहा कि रेणु जी ने अपना सारा जीवन लोक और लोक-साहित्य को समर्पित कर दिया था। उनकी कथाओं पर फ़िल्मे भी बनी। 'तीसरी क़सम' उनकी कहानी पर बनी अत्यंत लोकप्रिय फ़िल्म थी।
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, पारिजात सौरभ, कुमार अनुपम, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जय प्रकाश पुजारी, शुभचंद्र सिन्हा, ई अशोक कुमार, डा मनोज कुमार, सदानन्द प्रसाद, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा चंद्रशेखर आज़ाद, तृप्ति नाथ झा, बाँके बिहारी साव, डा राकेश दत्त मिश्र, शैलेंद्र कुमार आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंध-मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ