पूर्व दिशा में उदित हो रहा

पूर्व दिशा में उदित हो रहा,

रत्नेश कुमार तिवारी 
नवसंवत् का रवि देखो


यौवन को संप्राप्त हो रही,
ऋतु वसंत की छवि देखो ।।


प्रकृति से श्रृंगारित होती,
यह मधुर मनोहर महि देखो
मन्द मन्द मादक सुगन्ध संग,
बहती मलय पवन देखो।।


चैत्र शुक्ल प्रतिपद बुधवासर,
नव सम्वत्सर आया है ।
जिसके स्वागत हेतु धरा को,
प्रकृति ने स्वयं सजाया है।।


अलि गुंजारित पुष्पों पर और,
चहुं दिशि सरसों लहराई है ।
मोहकता निज पूर्ण रूप संग,
अब उतर धरा पर आई है।।


आज चराचर हर्षित होता,
जनमन हुआ प्रफुल्लित है ।
नवसंवत् के स्वागत में ,
यह जल -थल -नभ सम्मेलित हैं ।।


हे ! नवसंवत् हम सब मिलकर,
स्वागत तेरा करते हैं ।
श्रद्धा सुमन समर्पित कर,
तेरा अभिनन्दन करते हैं।।


हें ! विरोधकृत नवसंवत्,
हम तेरा वंदन करते हैं ।
सब विरोध तुम समन करोगे,
आशा तुमसे करते हैं।।


आशा परिपूरित हो सबकी,
भय विषाद सब दूर रहे ।
नवसंवत्सर मंगलमय हो,
सुख की धार अजस्र बहे।।


नित प्रगतिपथ पर बढ़े राष्ट्र,
यह भारतवर्ष अखंड रहे ।
सर्वधर्म समभाव बढ़े,
जन-जन में मधुर सम्बन्ध रहे।।


शुभ मंगल नववर्ष सभी को, नवकीर्ति,नव मान मिले ।
हो मधुर स्वप्न साकार सभी के,
और सबको सम्मान मिले।।


हैं यही शुभेच्छाएं मेरी,
यह वर्ष सभी सुखदायक हो ।
नितनव प्रगति करें हम सब, यह राष्ट्र विश्व का नायक हो।।
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