स्वागत नई सदी का

स्वागत नई सदी का

मार्कण्डेय शारदेय
ढहते हुए भवन में स्वागत नई सदी का।
अहम्मन्यता के रण में स्वागत नई सदी का।
टोली बना बुभुक्षा करताल है बजाती,
चिथड़ा पहन गरीबी आशा- रतन लुटाती,
बम फट रहे कहीं औ’ संगीन सनसनाती,
विधवा-विलाप-जैसा है गीत धरा गाती,
ऐसे विषाक्त क्षण में स्वागत नई सदी का।
प्रादूषणिक चँवर ले स्वार्थान्धता खड़ी है,
दादागिरी उसी की इस हेतु भी अड़ी है,
विज्ञान को घुमाती उसकी निजी छड़ी है,
लाचार हो चरण में दुनिया स्वतः पड़ी है,
चीत्कार की शरण में स्वागत नई सदी का।
कुछ स्वागती बड़ा ही उत्साह हैं दिखाते,
मानव-रुधिर मँगाकर घर-द्वार हैं धुलाते,
शोषण, दलन, हड़प से आतिथ्य-द्रव्य लाते,
लोभी पुरोहितों से हैं ‘स्वस्ति नः’ कराते,
उनके सड़े सपन में स्वागत नई सदी का।
जीवन नया दिलाने या और कहर ढाने,
स्वार्थान्धता मिटाने या औ उसे बढ़ाने,
सद्भाव को जगाने या मनुजता मिटाने,
क्या प्रकृति को रिझाने या औ उसे खिझाने,सुर या कि असुर-तन में स्वागत नई सदी का।
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