सन्यास की महिमा:-रामेश्वर मिश्र पंकज

सन्यास की महिमा:-रामेश्वर मिश्र पंकज

हिंदू समाज में सन्यासी सर्वोच्च पूज्य हैं।
सन्यासी का आदर हिंदू समाज का कर्तव्य है ।
वह अनिवार्य कर्तव्य है।

क्योंकि वे उस ज्ञान की साधना करते हैं जिसे सनातन धर्म में वास्तव में ज्ञान कहा गया है।
आत्मज्ञान और ब्रह्म ज्ञान की साधना ।
उस ज्ञान का वास्तविक आनंद तो उन्हें ही मिलता है।

लौकिक विषयों में सामान्यतः उनके ज्ञान का सन्यासी होने के कारण कोई विशेष महत्व नहीं होता ।
क्योंकि लौकिक विषयों में उनका ज्ञान लौकिक ज्ञान से संपन्न ज्ञानियों के निकष पर ही कसा और तौला जाएगा।
वेष या पथ के आधार पर नहीं।

धर्म के लोक जीवन और लोकयात्रा वाले पक्ष में इसीलिए सर्वोपरि हैं धर्मशास्त्र और उन विषयों में धर्मशास्त्र के ज्ञाता ज्ञानी ब्राह्मण ही प्रमाण होते हैं।साधारण सन्यासी की उनमें सामान्यतः गति नहीं होती।
ब्राह्मणों में किसी विषय में द्विमत हो तो ज्ञानी सन्यासी को निर्णय के लिए निवेदन करते हैं क्योंकि वे तनिक भी संसक्त नहीं होंगे।
परंतु यह स्थिति तब है जब कोई सनातन धर्म का अनुयाई समाज हो और उसने किसी सनातन धर्म के रक्षक पालक और पोषक राजा या शासक का अभिषेक किया हो।उन्हें चुना हो।
ईसाई बुद्धि की अज्ञान से भरी नकल से संचालित वर्तमान राज्य और उससे शासित और उस दशा में ही मगन हिंदू समाज में तो इनमें से किसी की विधिक रुप से निर्णय देने की कोई भूमिका मान्य ही नहीं है।
इस राज्य और इससे शासित समाज में जो लोग इन विषयों पर सन्यासी या ब्राम्हण के अधिकारों संबंधी कोई वाद विवाद करें तो उनके लिए वह प्रसिद्ध कहावत ही लागू होगी कि "सूत न कपास, ,जुलाहों में में लट्ठम लट्ठ।आचार्य 
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